गणेशी: लालच ग़रीबी का

दफ्तर के एक प्रोज़ेक्ट पर काम करते हुए हमने एक ठेकेदार को रंग-पेंट का काम दिया जो तकरीबन 20 दिन के आस पास चलना था.
ठेकेदार से सारी बाते या कहे की टर्म्स एंड कंडीशन कन्फर्म हो गयी और अगले दिन से काम शुरू भी हो गया और ठेकेदार गणेशी और 2 मजदूरों के साथ काम पर आने लगा.
गणेशी एक बिहारी मजदूर उम्र तक़रीबन 30 साल जो रोजी रोटी कमाने दिल्ली आया था. हमारी साईट पर रंग पेंट का काम करने लगा. शरीर से कमज़ोर और कुपोषित लेकिन काम के मामले में एकदम उसेन बोल्ट जितना तेज.
हम लोगो ने ठेकेदार को काम में थोड़े बदलाव की जानकारी के लिए फ़ोन किया उसने बताया की मैं कही बाहर हूँ और जो भी हो गणेशी को बता देना वो कर देगा एक्सपर्ट आदमी है.
तब चाय के टाइम में गणेशी के पास गया
मैं: और गणेशी पेंट तो सही कर दिया आपने
गणेशी: बस साहेब बचपन से पेंट और मजदूरी ही किये है !
मैं: मेरी सिंह जी (ठेकेदार) से बात हुई थी और रूम में ये ये जगह ये ये पेंट होना है तो आप देख लेना करना है कल सामान भी लेते आना.
गणेशी: साहब सामान के पैसे तो नहीं है !?
मैं:कोई नहीं कितने का आयगा बता दो बाकि हम बाद में देख लेंगे.
गणेशी:ठीक है साहेब
मैं: ठीक, और ये आँखे लाल कैसे हो रही है तुम्हारी.
गणेशी: बस साहब रात को देर तक काम किये थे तो नींद पूरी नहीं हुई.
मैं: क्यों कल तो 5 बजे ही निकल गए थे ना ??
गणेशी: हां साहेब फिर एक और जगह काम चल रहा है वंहा 11 बजे तक काम किये है.
मैं: अच्छा ठीक है
अगले दिन मैंने ठेकेदार को फ़ोन किया “की आज गणेशी नहीं आया 11 बज गए” सिंह साहब ने कहा की xxxxxxxxxx उसका नंबर है कॉल कर लेना वही मिलेगा.
फ़ोन करने पर गणेशी की पत्नी ने फ़ोन उठाया और कहने लगी की

गणेशी की पत्नी: वो रात को देर से आये थे और कल बाजार जाने की बात कह रहे थे तो आपके पास कुछ देर में आते ही होंगे.
मैं : ठीक है जी !!
कुछ देर में गणेशी ऑटो में सामान लेकर आ गया
मैं:आज तो लेट हो गए भईया ??
गणेशी: साहेब बाजार चले गए थे. तो इतना सुबह कोई दूकान नहीं खुला फिर उसी का इंतजार कर सामान लाये है
मैं: चलो कोई नहीं ठीक है आराम से कर लो अब जल्दी से.
गणेशी: ठीक है साहेब
मैं: क्या आज भी नहीं सोये क्या  ???
गणेशी: साहब 11 बजे तक काम था सोने में लेट हो गए.
मैं: अरे भाई रोज रोज इतना काम बीमार हो जाओगे!!
गणेशी: अरे बस साहेब सिंह साहब के काम को कैसे मना कर सकते है  बिलकुल हमारे पिता समान है काम देते है, खाना देते है, रोज ओवरटाइम का 200 रुपे भी देते है
और काम कर कर के रात को थक जाते है तो घर जाते टाइम खम्बा भी देते है.
मैं: तो ये आज कल ही इतना काम करते हो या रोज रहता है
गणेशी: साहेब 4 महीने से तो ऐसे ही चला आ रहा है मगर एक-दो महीने में ख़तम हो जायगा.
मैं: अच्छा अच्छा फिर भी आप इतना काम मत किया करो और कम पिया करो वरना दिक्कत हो जायगी वैसे ही ख़तम पड़े हो!!
गणेशी: अरे साहेब कमाने के लिए तो घर से आये है ऊपर से सिंह साहब जैसे अच्छे इंसान मिल गए जो खाना-पीना सब देते है तो क्या समस्या है.
मैं: चलो ठीक है आता हूँ शाम को
मेरी चाय ख़तम हो गयी और मैं अपना तकनिकी काम देखने वंहा से चला गया.
फिर कुछ दिनों में हमारा प्रोज़ेक्ट ख़तम हो गया जिसमे सिंह साहब का और गणेशी का काम सराहनीय रहा.
इस बात को तकरीबन 2 महीने गुजर चुके थे और हम किसी अन्य प्रोज़ेक्ट पर काम कर रहे थे. जिसमे हमे 2 दिन के लिए पेंटर की जरुरत थीजिसके लिए मैंने सिंह साहब को फ़ोन लगाया मगर उनका फ़ोन नहीं उठा 4-5 बार के बाद भी फ़ोन नहीं उठा.
फिर मैंने गणेशी के पास फ़ोन घुमाया:
मैं: हेल्लो
गणेशी की पत्नी: हेल्लो
मैं: एक बार गणेशी से बात करवाना
गणेशी की पत्नी: गणेशी मर गए
अब इस पूरे वाक्या में गलती किसकी थी और किसकी नहीं ये धुंधला सा लगता है लालच दोनों तरफ था मगर नुक्सान किसका रहा ये शीशे सा साफ है.

बाकि यार ग़रीब की ग़रीबी का इतना भी फ़ायदा ना उठाओ की उसकी क़ीमत उसका पूरा परिवार चुकाए.

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