छोरा हो या छोरी हो
घणा सर प ठाया सेधया करे
बिचारा करके सांपा न जो
दूध पिलाया सेधया करे
यारी प्यारी रिश्तेदारी
राज बताया सेधया करे
घणी नफ़रत सेधे प्यार भी सेधे
ग़ुस्सा इकरार भी सेधया करे
सीधा माणस सेधे दुनिया
वक्त की मार भी सेधया करे
“दीप” बदलजा होले टेढ़ा
सीधे न सब सेधया करे
प्रदीप सोनी
]]>भाई के गिले अर के शिकवे
तू के बाता की बात करे
बदले वक्त बदल जा माणस
क्यू खामेखा तकरार करे
जो गया वक्त वो बढ़िया था
जो आणा वक्त वो बढ़िया स
आछे भूंडे बीच जो कट जया
वे जीवन की घडिया स
आणी दुनिया जाणी दुनिया
नदी का बहता पाणी दुनिया
मुह प बोले मीठी दुनिया
पर स आग लगाणी दुनिया
हासे माणस पावे माणस
रोवे माणस खोवे माणस
दिल हल्का हो जीते दुनिया
भर क दिल न रोवे माणस
आया एकला जाना एकला
कर्मा की पोथी कड़े टेकला
गेल ना जावे धेला एक भी
जीते जी सब छाती टेक ला
दीप का के स कापी भरता
जज्बात न अक्षर करता
जे बण जा कविता गा देनदा
ना कागज़ पाड़ बगा देनदा
प्रदीप सोनी
]]>एक किसान क घरा गौ माता न बछड़े त जन्म दिया. जब साल भर का होया तो किसान न उसके नाथ घलवा दी. जवान होया तो सारी उमर खेत कमाता रहया और टेम गेल वो सांड बीचारा बूढा अर लाचार होके मरण की बाट देखण लाग्या.
पहले गामा म मंण्डासा आले आया करते जो बूढ़े बलद ख़रीदते. तो किसान न वे बैल देखण खातर बुलाए. मंण्डासा आले बोले अक इसका मोल हम पाछे लवांगे पहला इसने चला क दिखा. अर जब वो किसान बैल न खोलण गया तो उसने अपना सर धरती प टेक दिया अर आख्या त तरड तरड आसू पडण लाग गे.
वो बैल किसान कानी टपकती आख्या त देखण लाग्या अक मेरे मालिक इब मेरे पराक्रम थक लिए इब बस की कोन्या रह री जब त पैदा होया मन्ने तेरी ख़ूब सेवा करी गर्मी, सर्दी, बरसात म खेत कमा कमा तेरा घर भर दिया जब तक जान थी कदे तेरा साथ नहीं छोड़ा अर आज जब शरीर म सत ना रह रा तो तू घर त काढ़े है. मेरे मालिक तू मन्ने बेचके पापी तो बणेगा ही गेल मेरी माँ की कोख़ का लानत भी पावेगा. अन्न दाता मन्ने हमेशा तेरे कमाया ही स कदे कुछ मंग्या नहीं लाग लिया मेरा आखरी टेम आ लिया अर हो सके तो इस बाड़े में आखरी सास लेण की मेरी इच्छा पूरी कर दे. के बेरा इन कसाईया का मेरी गेल के हिसाब करेंगे. बाकि तेरी मर्जी स मेरे मालिक अर या बात कह क बैल रोता रह्या.
मेरे भाई इसे बैल माहरे घरा म भी हो सके है अर काल न हम भी इसे बैल बनांगे. तो आज जो बोया जावेगा काल वो ही कटेगा.
राम राम
]]>निकल रही है निकल ही जायगी बेशुमार हो रौनके ज़िन्दगी में बेशक कभी रुसवा किस्मते होंगी कभी वक्त की रुसवाई होगी कभी युद्ध खिलाफ़ अपने होगा कभी जंग दुनिया संग आई होगी आज कौन है यहाँ जो मुक्क्कम हुआ हो काश और अगर तो हर दिल का ठहरा क़िस्सा है बचके तो कौन जायगा यहाँ से यही रहते इत्मिनान हो तो वो जन्नत से कम है क्या हौंसले ही देंगे राह आगे जाने का राह में वरना पीछे खीच रहे राह चलते है पा जायंगे मंजिल हालातों से टकरा कर के जैसे कीचड़ के आँगन में फूल कमल का खिलता है भरोसा रखो उस नीली छत वाले पर मगर उसी के भरोसा रह मत जाना अरे मान लिया वो है तो सभी का मगर बंधू सगा तो वो किसी का नहीं होता]]>
सूरज़ रोज़ निकलता है रात अंधेरी से लड़कर आँखों मे सपने लिए हुए अरमानों के कंधे पर चढ़ कर हसरत जगमग उठती है मसतक पर तेज़ झलकता है क्यों वक़्त नही रूक जाता है नर ओढ़ वीरता चलता है पर जंग जीवन की अंनत रही पथ पथ पर उलझन आती है कायर को रही तोड गिरा बलशाली को तड़पती है रोज अंधेरे मे दिन के ये रुह बावरी फ़िरती है बिन मक़सद ज्यूँ चलती नौका जा अंजाने साहिल मिलती है काग़ज़ के टुकड़ों कि ख़ातिर अनमोल मिला वो बेच दिया जो वक़्त क़ीमती हीरा था जला आग सुलगती झोक दिया ये आज गया यू कल जाना दिन साल महीने ढल जाना जीवन के पथ रथ चल जाना जो मिला आज वो कल जाना आशा और निराशा कि छाया जीवन मे तार रहे कुछ मार वक़्त कि पड़ती है कुछ पैर कुल्हाड़ी मार रहे है काली घटा निराशा कि छिपी जिसमें किरण है आशा कि इस जीवन कि परिभाषा कि फ़सल खेत मे डाल रहे अब रोज के क़िस्सों का आलम कुछ दिल पर यू आ बैठा दीप कि हर रोज ही हस्ती उठती है हर रोज ही मरने की ख़ातिर प्रदीप सोनी]]>
जीवन में उम्मीद का होना बेहद जरुरी है दोस्त मगर उमीदों के रथ पर सवार मत होना ख्यालों के रास्ते अक्सर दीवारों में जा भिड़ते है अपने पंखो की जान पर ही आसमान छुआ जाता है अंत तो जीवन का मिटटी और राख़ ही है मगर दुनिया में भीड़ की है तो आसमान भी छूकर देखो सही वक्त का इंतज़ार करना बेईमानी है दोस्त जो बेईमानी हर शख्स खुद के साथ हर वक्त करता है अच्छा होना कोई काबिलियत तो नहीं है इसीलिए काबिल होना ही अच्छा है कामयाबी के लिए दुनिया की मंडी में तुम्हे हमेशा तौला जायेगा अपना भाव बनाना पड़ता है अपने आप नहीं होता सब्र का इम्तिहान उस नीली छत वाले की फितरत है तो उस पर भरोसे की फ़ितरत मैं कैसे छोड़ दूँ प्रदीप सोनी]]>