मजदूर यूनियन: एक असली क़िस्सा कंपनी के माहौल का

मार्च का अंतिम हफ़्ता और सभी मजदूरों में ध्याड़ी बढ़ने की संभावनाए और उम्मीदे चरम पर. आखिर पिछले दो महीनों से तकरीबन सभी ने मखन, दूध, घी, जूतों की पोलिश और ना जाने क्या क्या इस्तेमाल नहीं किया बॉस के कपड़े धोने में.

परिणाम आया और पूरी कंपनी में किसी की मजदूरी नहीं बढ़ी मैनेजमेंट ने पैसो की कड़की को कारण बताया. जिससे सभी को जोर का झटका हाय जोरो से लगा.

अब इस तरह की स्तिथि जब जब उत्पन्न होती है तो ऐसे में एक मजदूर यूनियन का सरदार अवतार लेता है ये वही होता है जिसका कंपनी में सबसे ज्यादा एक्स्पेरिंस होता है और कई सालो से तनख्वाह भी नहीं बढ़ी होती.  

उसने सभी बालकों को इकठा किया और कहा “ये कंपनी घटिया है ऐसी कंपनी में काम करने का कोई फायदा नहीं सारे एक साथ काम छोड़ देते है अपने आप पैसे बढ़ेंगे ये ही टाइम है अपनी एकता दिखने का कल से कोई मत आना”

अगले दिन ऑफिस में सन्नाटा बॉस लोग फ़ोन करे तो स्विच ऑफ या कोई रिप्लाई नहीं. मैनेजमेंट सारा मामला समझ गयी .

अगले ही दिन कंपनी ने 20 नए फ्रेशेर भर्ती किये और सबको कुत्तो की तरह काम सिखाना चालू कर दिया मैनेजमेंट के लोगो ने भी मजदूरों वाली कुर्सिया संभाल ली और हफ्ते के अंदर बालकों को बाहुबली बना दिया. दस दिन में कंपनी का माहौल पहले जैसा नार्मल हो गया.

मगर वे 20 क्रन्तिकारी अगले कई महीनों तक बेरोजगार रहे. जिन्हें लगता था कंपनी उनके बिना बंद हो जायगी.

मित्रो विरोध करने का एक तरीका होता है तहजीब होती है आपकी कंपनी छोटी हो या बड़ी, अच्छी हो या बुरी, मगर ख़ुद को कभी कंपनी से बड़ा समझने की भूल ना करे. जीवन के एक सत्य का हमेशा स्मरण रखे की किसी के बिना किसी का कोई काम नहीं रुकता मेरे भाई.

राम राम  

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