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बैल अर किसान : बातचीत बूढ़े बैल अर किसान की

बैल अर किसान : बातचीत बूढ़े बैल अर किसान की

एक किसान क घरा गौ माता न बछड़े त जन्म दिया. जब साल भर का होया तो किसान न उसके नाथ घलवा दी. जवान होया तो सारी उमर खेत कमाता रहया और टेम गेल वो सांड बीचारा बूढा अर लाचार होके मरण की बाट देखण लाग्या.

पहले गामा म मंण्डासा आले आया करते जो बूढ़े बलद ख़रीदते. तो किसान न वे बैल देखण खातर बुलाए. मंण्डासा आले बोले अक इसका मोल हम पाछे लवांगे पहला इसने चला क दिखा. अर जब वो किसान बैल न खोलण गया तो उसने अपना सर धरती प टेक दिया अर आख्या त तरड तरड आसू पडण लाग गे.

वो बैल किसान कानी टपकती आख्या त देखण लाग्या अक मेरे मालिक इब मेरे पराक्रम थक लिए इब बस की कोन्या रह री जब त पैदा होया मन्ने तेरी ख़ूब सेवा करी गर्मी, सर्दी, बरसात म खेत कमा कमा तेरा घर भर दिया जब तक जान थी कदे तेरा साथ नहीं छोड़ा अर आज जब शरीर म सत ना रह रा तो तू घर त काढ़े है. मेरे मालिक तू मन्ने बेचके पापी तो बणेगा ही गेल मेरी माँ की कोख़ का लानत भी पावेगा. अन्न दाता मन्ने हमेशा तेरे कमाया ही स कदे कुछ मंग्या नहीं लाग लिया मेरा आखरी टेम आ लिया अर हो सके तो इस बाड़े में आखरी सास लेण की मेरी इच्छा पूरी कर दे. के बेरा इन कसाईया का मेरी गेल के हिसाब करेंगे. बाकि तेरी मर्जी स मेरे मालिक अर या बात कह क बैल रोता रह्या.

मेरे भाई इसे बैल माहरे घरा म भी हो सके है अर काल न हम भी इसे बैल बनांगे. तो आज जो बोया जावेगा काल वो ही कटेगा.

राम राम

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