श्रीलंका में चर्च पर हुए आतंकवादी हमले के बाद श्रीलंका सरकार प्रचंड रूप से हरकत में आई और देश में आपातकाल की घोषणा कर आतंकवादी समूह से जुड़े लोगो को ढूंढ ढूंढ कर मार रही है.
इसी के साथ श्रीलंकाई सरकार ने मुँह ढ़कने वाले किसी भी प्रकार के कपड़े पर बैन लगाया है. जिसका सीधा सीधा अर्थ है बुर्के पर बैन लगाया है. सरकार के इस फैसले के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर आलोचना और सरहना का दौर शुरू हो गया है.
लोगो का मानना है की ये फैसला किसी एक समुदाय के खिलाफ़ लिया गया है और इससे उन की धार्मिक सद्भावना पर चोट होती है.
आप कुछ देर के लिए ख़ुद को श्रीलंकाई सरकार के मुखिया के रूप में मान कर चलिए.
- आप के सामने आपके देश के सैकड़ो बेकसूर लोगो को अलग अलग जगहों पर बम से उड़ा दिया जाये क्या ये आपके देश की सुरक्षा व्यवस्था पर तमाचा नहीं है.
- हमले के बाद कोई कहे की ये हमला हमने किया जो हो सके उखाड़ लो क्या ये किसी भी देश के स्वाभिमान की धजियाँ नहीं उड़ाता.
दुनिया के अधिकतर देशो में मेजोरिटी माइनॉरिटी जनसंख्या आधार है मगर ऐसा क्यों होता है की ज्यादातर एक ही समुदाय अपने हितों और अपनी धार्मिक रीतियों के लिए देशो के शासन से भिड़ता रहता है.
मेरा मानना यह है की हमे माइनॉरिटी को संरक्षण देना चाहिए ज़रूरी भी है. मगर इतना भी नहीं की वो आप के सर पर चढ़ जाये जिसकी क़ीमत मेजोरिटी वाले चुकाए. मैं श्रीलंकाई सरकार के बुर्का प्रतिबंब्ध वाले फैसले का समर्थन करते हुए कहना चाहता हूँ. किसी भी सरकार का ये दायित्व है की वह देश के सभी नागरिको को सुरक्षा दे, सभी के हितों की रक्षा करे और देश अपने हिसाब से चलाए. बड़ी बड़ी अर्थव्यवस्थाए चलाना एक बेहद जटिल काम है और आप इसमें सभी को ख़ुश नहीं रख सकते. और यदि देश की सुरक्षा त्याग मांगती है तो हमारे मुस्लिम समुदाय को भी आगे आना चाहिए और सरकार का समर्थन कर उसके इस फैसले का स्वागत करना चाहिए. क्युकी देश से बड़ा कोई धर्म नहीं होता.
कुछ लोग इस बात से शायद इतेफाक नहीं रखेंगे कहेंगे की श्रीलंका में जो हो रहा है वो ग़लत है. उन के लिए मेरी यही राय है की चाइना में भी बैन है उनके खिलाफ़ आवाज बुलंद करे. वहा तो ढाढ़ी और उपवास पर भी प्रतिबंध है UN में जाकर शिकायत करे.
अंत में मेरी यही राय है: जिसकी जमीन उसके कानून