मजबूरी


उस दिन बॉस ने केबिन में बुलाया और बुलाकर शुरू किया अपना परम ज्ञान झाड़ना और बताना की उससे बड़ा अंतर्यामी कोई नहीं और मुझसे बड़ा नाकाबिल कोई नहीं. वो बता रहा था की काम कैसे किया जाता है और कैसे बात की जाती है. वो बता रहा था सीनियर्स की इज्ज़त कैसे करे और कैसे उनके आर्डर माने….. काफी देर से वो बोले जा रहा था और सुनते सुनते मेरे कानो में भी कुछ अनजानी आवाजे आने लगी.
वो आवाज़ थी मकान मालिक आंटी की जो आकर पूछ रही थी “बेटा किराया कब दोगे”.
वो आवाज़ थी बिजली के बिल की जो बोल रहा था 110 यूनिट है इस महीने.
वो आवाज़ थी BSNL की जो पिछले 10 दिन से कह रहा है की मुझे कटने से बचा लो.
वो आवाज़ थी क्रेडिट कार्ड की जो जेब में उछालकर अपनी जान की खैर मांग रहा था.
वो आवाज़ थी रोहन की जिसको किसी काम के लिए 5000 की जरुरत थी.
वो आवाजे थी सर्फ साबुन तेल की जो बोल तो कुछ नहीं रहे थे लेकिन मैं सुन सब रहा था.
और फिर एक आवाज दिल से आई बोला “क्या सुन रहा है इस रोशनी वाले की कह दे नहीं करनी तेरी गुलामी”
पर तभी दिमाग ने कहा “एक आवाज के चक्कर में इतनी आवाजों को मत दबा”

 “ठीक है सर आगे से ऐसा नहीं होगा” ये कहकर मैं वंहा से निकल लिया.

मैं समझ रहा था की वो मुझे नहीं मेरी मजबूरी को भला बुरा कह रहा था
और मैं बदनसीब भी उसकी नहीं अपनी मजबूरी की सुन रहा था.

( ये असल वाक्या अपने एक घनिष्ट मित्र ने साझा किया है )
हवा में प्रणाम  


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