सेंट पीटर्सबर्ग के राजीव गांधी चौक पर राजा के ख़िलाफ़ बोलने वाले मियाँ मुहफट को फ़ासी दी जा रही थी. फांसी के समय हाथ में कुरकुरे लिए ज़ार ( राजा ) बालकनी वाली सीट से फांसी का आनंद ले रहे थे.
मियाँ मुहफट पर राजा और सेना के ख़िलाफ़ गाली गलोच करने का आरोप था जिस के कारण उसे स्टूल पर खड़ा कर रस्सी गले में डाल दी गयी 5 बजकर 55 मिनट पर जल्लादों ने स्टूल खीँच लिया लेकिन कुदरती रस्सी टूट गयी और मियाँ साहब ऊपर से सीधा ज़मीन पर धम्म लैंड कर गाये.
राजा ने गुस्से में कुरकुरे चबाते हुए दरबान ज्ञानचंद(B.Sc, M.Sc, B.Tech, M.Tech, Phd, LLB) को बुलाया और कहा क्या किया जाये?? राजा साहब ऐसे रस्सी टूटना भगवान का आदेश है की इसको जीवित छोड़ दिया जाये. राजा ने बुरी सी शकल बना कर मियाँ मुहफट को रिहा करने का आदेश दिया.
मियाँ साहब उठे और कपड़े झाड़ते हुए बोले “सालो तुम्हारी तो रस्सी भी नकली है”
“तेरी बहन की ….. भगवान का आदेश देखा जायगा पहले इस को टांगो” ज़ार ने कहा
जल्लादों ने फुर्ती से नई रस्सी बांध मिया को परलोक डिलीवर किया. इस कहानी से हमे ये शिक्षा मिलती है की मियाँ मत बनो ज़िन्दगी बार बार मौके नहीं देती.