8 पुलिस वालो की हत्या की ख़बर के साथ ही अखिल भारतीय स्तर पर भविष्यवाणी हो गयी थी की विकास दुबे एंड कंपनी का परलोक का वीजा लग चुका है और जल्द ही उनकी फ्लाइट है.
ठीक हुआ भी वैसा ही सर्च आपरेशन, गिरफ़्तारी, भागने की कोशिश, पुलिस पर हमला, एनकाउंटर कथा समाप्त.
मगर इस पूरे घटनाक्रम में कुछ ऐसे उलझे सवाल है जिसे देश की जनता जानना चाहती है.
आख़िर कब तक 1970 के दशक की ये घिसी पिटी टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करके एनकाउंटर होते रहेंगे.
इतने सलीके से गाड़ी पलटाने की तकनिकी सिनेमा जगत और आम लोगो से साझा की जाये.
एनकाउंटर हमेशा खाली खेतों के बीचों बीच ही क्यों होते है और अपराधी भागना कंहा चाहते है.
अपराधी गोली लगने से मरा या उत्तर प्रदेश पुलिस के ख़ास हथियार “ठाय ठाय ठाय” सुनकर.
पब्लिक में कौन सी कहानी सुनानी है इसकी सूचना सभी को क्यों नहीं दी जाती
खैर जो भी है कुल मिला कर मीडिया को मसाला, जनता को एंटरटेनमेंट और उत्तर प्रदेश प्रशासन को वाह वाही मिल गयी. वैसे एक बात है
सरकार से बड़ा बदमास कोई नहीं…..कोई नहीं……कोई नहीं !!!