क्या आपको याद है प्राचीन काल जब दादी-नानी बच्चों को सुलाने के लिए परो और परियों की कहानियाँ सुनाती जिसे बालक आसमान की तरफ़ देखते हुए गौर से सुनते और कहानी की गहराइयों में डूबते हुए सो जाते.
वो दौर फुल फुर्सत का दौर था लोगो के पास गिने चुने दो चार काम होते जैसे ताश खेलना, चुगली करना, उलाहना देना या किसी के बाग़ से अमरुद तोड़ कर भाग जाना और बाद में मना कर देना. इस तरह के पराक्रमी कार्यो के बीच जीवन शानदार चल रहा था और समस्याओं का जीवन में नामो निशान नहीं था.
उस दौर में चैन रिएक्शन भी बड़े सिंपल और सोभर हुआ करते ससुर ने बेटे को पीटा –> बेटे ने घरवाली को –> घर वाली ने मुन्ना को –> मुन्ना ने पड़ोसी के मुन्ना को –> पड़ोसी के मुन्ना ने –> अपने पड़ोसी के मुन्ना को और जिस मुन्ना से कोई ना पिटे –> वो कुत्ते – बिल्ली को पीट कर क्रोध शांत कर लेता और शाम सब एक थाली के चट्टे बट्टे.
मगर आज के इस महा उन्नत दौर में हमारी संवेदनाए बिल्कुल गुड़ गोबर हो चुकी है जिसका सबसे ज्यादा नुकसान बालकों को हो रहा है.
कहानी – फ़ोन, टेलेंट – फ़ोन , पढाई – फ़ोन, गंद मचाना – टिक टोक, गेम – फ़ोन
ले देकर आगें, पीछे, ऊपर, नीचे, दाए, बाए फ़ोन.. फ़ोन.. फ़ोन.. और टिक टोक
इमान वाली बात है दसवी के रिप्रोडक्शन वाले चैप्टर के डाउट कभी शर्मा शर्मी में क्लियर नहीं किये. और आज के बालक देखलो HD में मतलब हाई डेफिनिशन विसुअल्स की मदद से सारे डाउट मिटाते नहीं डाउट तहस नहस कर देते है.
घोर कलयुग भाई घोर कलयुग
यार ये कहानी ले जानी कंहा थी चली कंहा गयी