बचपन चाहें किसी भी दौर का हो होता लाजवाब है मगर ये बात सिर्फ कहने के लिए है असल में 90 के दशक के बच्चो का जो बचपन रहा है वैसा ना कभी भूत में हुआ ना कभी भविष्य में होगा.
दोपहर में खाने के बाद हम कुछ दोस्त अक्सर चाय के लिए नजदीक टपरी पर जाते लेकिन एक ऱोज ये नजारा देखने को मिला तो जैसे बचपन आँखों में तैर गया. वही रबड़ के छले वही उत्साह और वही चेहरे पर मासूमियत कसम से ऐसा लगा की एक दौर लौट आया हो आँखों के दरमियाँ.
आज के इस दौर में विकास और तकनीक की सुनामी ने एक मासूम बचपन को कही वक्त की गहराई में डूबा दिया है और बचपन के नाम पर बचे है चलते फिरते मशीनी जज्बात .