सुशांत सिंह राजपूत की ख़ुदकुशी से पूरा देश दुःख में है. हर जगह उन्ही से जुड़े स्टेटस, संवेदना और ज्ञान ने फेसबुक, whatsapp और Instagram पर बाढ़ ला दी है. मगर क्या वाकई में इतने दुःख की बात है ??
उनके निजी सिनेमा प्रदर्शन, छोटे शहर से आकर ख़ुद को स्थापित करने को देखे तो वो एक सफ़ल किरदार थे मगर असली जीवन में उन्होंने साबित कर दिया की वो एक हारे हुए इंसान रहे. जिन्होंने ज़िन्दगी से ना लड़ते हुए इतनी कम उम्र में मौत को गले लगाया वो केवल एक अभिनेता मात्र थे कोई हीरो नहीं.
देश के असली हीरो आज भी सीमा पर है उनके अभिनय में दाव पर किसी का सिन्दूर है तो किसी के बुढ़ापे का सहारा उन्हें अपनी ज़िन्दगी के महत्वपूर्ण फैसलों के लिए कुछ सेकंड, मिनट या घंटे का ही समय मिलता है. और विडंबना ये की इनकी पिक्चर में रिटेक नहीं होता सीधा पैक अप होता है.
आज अस्पतालों और सड़को पर अनगिनत हीरो दिन रात लड़ रहे है और लाजमी है उनमे से काफ़ी लोग जल्द ही इस दुनिया में नहीं होंगे. आज हमारे समाज को अपने हीरो बदलने की ज़रूरत है. ये अभिनेताओ का जमाना जा चुका है सेना, पुलिस, सफाईकर्मी और डॉक्टर ही आज के असली हीरो है.
ख़ुदकुशी पर यही कहा जा सकता है की भाई किसी के बिना किसी का कोई काम नहीं रुकता चाहें कितना ही बड़ा आदमी हो. और लोगो ने तो फुकने जाते टाइम भी यही कहना है “भाई और कितनी देर लगेगी जल्दी करो”
मन के हारे हार है मन के जीते जीत
राम राम