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Author: Pradeep Soni

आरंभ: प्रदीप सोनी

Posted on August 21, 2021

सेधया करे

Posted on October 15, 2020October 15, 2020

छोरा हो या छोरी हो घणा सर प ठाया सेधया करे बिचारा करके सांपा न जो दूध पिलाया सेधया करे यारी प्यारी रिश्तेदारी राज बताया सेधया करे घणी नफ़रत सेधे प्यार भी सेधे ग़ुस्सा इकरार भी सेधया करे सीधा माणस सेधे दुनिया वक्त की मार भी सेधया करे “दीप” बदलजा होले टेढ़ा सीधे न सब…

तकरार: एक हरियाणवी कविता

Posted on October 15, 2020October 15, 2020

भाई के गिले अर के शिकवे तू के बाता की बात करे बदले वक्त बदल जा माणस   क्यू खामेखा तकरार करे जो गया वक्त वो बढ़िया था जो आणा वक्त वो बढ़िया स आछे भूंडे बीच जो कट जया     वे जीवन की घडिया स आणी दुनिया जाणी दुनिया नदी का बहता पाणी दुनिया…

मेरा लेख प्रतियोगिता ( 28-06-2020)

Posted on June 28, 2020June 29, 2020

बैल अर किसान : बातचीत बूढ़े बैल अर किसान की

Posted on June 13, 2020June 25, 2020

एक किसान क घरा गौ माता न बछड़े त जन्म दिया. जब साल भर का होया तो किसान न उसके नाथ घलवा दी. जवान होया तो सारी उमर खेत कमाता रहया और टेम गेल वो सांड बीचारा बूढा अर लाचार होके मरण की बाट देखण लाग्या. पहले गामा म मंण्डासा आले आया करते जो बूढ़े…

ऊपर वाला सगा किसी का नहीं

Posted on June 8, 2020June 25, 2020

निकल रही है निकल ही जायगी बेशुमार हो रौनके ज़िन्दगी में बेशक कभी रुसवा किस्मते होंगी कभी वक्त की रुसवाई होगी कभी युद्ध खिलाफ़ अपने होगा कभी जंग दुनिया संग आई होगी   आज कौन है यहाँ जो मुक्क्कम हुआ हो काश और अगर तो हर दिल का ठहरा क़िस्सा है बचके तो कौन जायगा…

सपने और हक़ीकत 

Posted on June 4, 2020June 7, 2020

सूरज़ रोज़ निकलता है रात अंधेरी से लड़कर आँखों मे सपने लिए हुए अरमानों के कंधे पर चढ़ कर  हसरत जगमग उठती है मसतक पर तेज़ झलकता है क्यों वक़्त नही रूक जाता है नर ओढ़ वीरता चलता है  पर जंग जीवन की अंनत रही पथ पथ पर उलझन आती है कायर को रही तोड गिरा बलशाली को तड़पती है  रोज अंधेरे मे दिन के ये रुह बावरी फ़िरती है बिन मक़सद ज्यूँ चलती नौका जा अंजाने साहिल मिलती है  काग़ज़ के टुकड़ों कि ख़ातिर अनमोल मिला वो बेच दिया जो वक़्त क़ीमती हीरा था जला आग सुलगती झोक दिया  ये आज गया यू कल जाना दिन साल महीने ढल जाना जीवन के पथ रथ चल जाना जो मिला आज वो कल जाना  आशा और निराशा कि छाया जीवन मे तार रहे कुछ मार वक़्त कि पड़ती है कुछ पैर कुल्हाड़ी मार रहे  है काली घटा निराशा कि छिपी जिसमें किरण है आशा कि इस जीवन कि परिभाषा कि फ़सल खेत मे डाल रहे  अब रोज के क़िस्सों का आलम कुछ दिल पर यू आ बैठा दीप कि हर रोज ही हस्ती उठती है हर रोज ही मरने की ख़ातिर …

ख्याल

Posted on June 4, 2020June 7, 2020

जीवन में उम्मीद का होना बेहद जरुरी है दोस्त मगर उमीदों के रथ पर सवार मत होना ख्यालों के रास्ते अक्सर दीवारों में जा भिड़ते है   अपने पंखो की जान पर ही आसमान छुआ जाता है अंत तो जीवन का मिटटी और राख़ ही है मगर दुनिया में भीड़ की है तो आसमान भी…

Lafz 2.0 : Jhajjar, Haryana

Posted on November 7, 2019June 22, 2020

सफ़र

Posted on December 24, 2018June 7, 2020

  ऐ मेरे सफर के राहियों  एक दिन ये सफर भी नहीं होगा और यह जिंदगी भी नहीं   मैं इसलिए नहीं चलता कि मुझे तुम्हें दिखाना है मैं इसलिए चलता हूं कि ये रास्ता कुछ अंजाना है   मिलेंगे तुमसे राही और तुमसे मुसाफिर भी मुझे तो बस हाथ मिलाना है और आगे बढ़ते जाना…

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