Author: Pradeep Soni
सेधया करे
छोरा हो या छोरी हो घणा सर प ठाया सेधया करे बिचारा करके सांपा न जो दूध पिलाया सेधया करे यारी प्यारी रिश्तेदारी राज बताया सेधया करे घणी नफ़रत सेधे प्यार भी सेधे ग़ुस्सा इकरार भी सेधया करे सीधा माणस सेधे दुनिया वक्त की मार भी सेधया करे “दीप” बदलजा होले टेढ़ा सीधे न सब…
तकरार: एक हरियाणवी कविता
भाई के गिले अर के शिकवे तू के बाता की बात करे बदले वक्त बदल जा माणस क्यू खामेखा तकरार करे जो गया वक्त वो बढ़िया था जो आणा वक्त वो बढ़िया स आछे भूंडे बीच जो कट जया वे जीवन की घडिया स आणी दुनिया जाणी दुनिया नदी का बहता पाणी दुनिया…
बैल अर किसान : बातचीत बूढ़े बैल अर किसान की
एक किसान क घरा गौ माता न बछड़े त जन्म दिया. जब साल भर का होया तो किसान न उसके नाथ घलवा दी. जवान होया तो सारी उमर खेत कमाता रहया और टेम गेल वो सांड बीचारा बूढा अर लाचार होके मरण की बाट देखण लाग्या. पहले गामा म मंण्डासा आले आया करते जो बूढ़े…
ऊपर वाला सगा किसी का नहीं
निकल रही है निकल ही जायगी बेशुमार हो रौनके ज़िन्दगी में बेशक कभी रुसवा किस्मते होंगी कभी वक्त की रुसवाई होगी कभी युद्ध खिलाफ़ अपने होगा कभी जंग दुनिया संग आई होगी आज कौन है यहाँ जो मुक्क्कम हुआ हो काश और अगर तो हर दिल का ठहरा क़िस्सा है बचके तो कौन जायगा…
सपने और हक़ीकत
सूरज़ रोज़ निकलता है रात अंधेरी से लड़कर आँखों मे सपने लिए हुए अरमानों के कंधे पर चढ़ कर हसरत जगमग उठती है मसतक पर तेज़ झलकता है क्यों वक़्त नही रूक जाता है नर ओढ़ वीरता चलता है पर जंग जीवन की अंनत रही पथ पथ पर उलझन आती है कायर को रही तोड गिरा बलशाली को तड़पती है रोज अंधेरे मे दिन के ये रुह बावरी फ़िरती है बिन मक़सद ज्यूँ चलती नौका जा अंजाने साहिल मिलती है काग़ज़ के टुकड़ों कि ख़ातिर अनमोल मिला वो बेच दिया जो वक़्त क़ीमती हीरा था जला आग सुलगती झोक दिया ये आज गया यू कल जाना दिन साल महीने ढल जाना जीवन के पथ रथ चल जाना जो मिला आज वो कल जाना आशा और निराशा कि छाया जीवन मे तार रहे कुछ मार वक़्त कि पड़ती है कुछ पैर कुल्हाड़ी मार रहे है काली घटा निराशा कि छिपी जिसमें किरण है आशा कि इस जीवन कि परिभाषा कि फ़सल खेत मे डाल रहे अब रोज के क़िस्सों का आलम कुछ दिल पर यू आ बैठा दीप कि हर रोज ही हस्ती उठती है हर रोज ही मरने की ख़ातिर …
ख्याल
जीवन में उम्मीद का होना बेहद जरुरी है दोस्त मगर उमीदों के रथ पर सवार मत होना ख्यालों के रास्ते अक्सर दीवारों में जा भिड़ते है अपने पंखो की जान पर ही आसमान छुआ जाता है अंत तो जीवन का मिटटी और राख़ ही है मगर दुनिया में भीड़ की है तो आसमान भी…
सफ़र
ऐ मेरे सफर के राहियों एक दिन ये सफर भी नहीं होगा और यह जिंदगी भी नहीं मैं इसलिए नहीं चलता कि मुझे तुम्हें दिखाना है मैं इसलिए चलता हूं कि ये रास्ता कुछ अंजाना है मिलेंगे तुमसे राही और तुमसे मुसाफिर भी मुझे तो बस हाथ मिलाना है और आगे बढ़ते जाना…