जो दौर गवाँए बैठे है थे शौक नये अरमान बहुत बसते थे दिल में ख्वाब बहुत बचपन वाले दिनों का वो इतवार भुलाए बैठे है आया फिर से याद वही जो दौर गवाँए बैठे है कभी कच्चे पक्के रास्तो में कभी रेल बसों के धक्को में चार जून की रोटी खातिर…
जो दौर गवाँए बैठे है थे शौक नये अरमान बहुत बसते थे दिल में ख्वाब बहुत बचपन वाले दिनों का वो इतवार भुलाए बैठे है आया फिर से याद वही जो दौर गवाँए बैठे है कभी कच्चे पक्के रास्तो में कभी रेल बसों के धक्को में चार जून की रोटी खातिर…