तकरार: एक हरियाणवी कविता

भाई के गिले अर के शिकवे

तू के बाता की बात करे

बदले वक्त बदल जा माणस  

क्यू खामेखा तकरार करे


जो गया वक्त वो बढ़िया था

जो आणा वक्त वो बढ़िया स

आछे भूंडे बीच जो कट जया    

वे जीवन की घडिया स


आणी दुनिया जाणी दुनिया

नदी का बहता पाणी दुनिया

मुह प बोले मीठी दुनिया  

पर स आग लगाणी दुनिया


हासे माणस पावे माणस

रोवे माणस खोवे माणस

दिल हल्का हो जीते दुनिया

भर क दिल न रोवे माणस


आया एकला जाना एकला

कर्मा की पोथी कड़े टेकला

गेल ना जावे धेला एक भी

जीते जी सब छाती टेक ला


दीप का के स कापी भरता

जज्बात न अक्षर करता

जे बण जा कविता गा देनदा

ना कागज़ पाड़ बगा देनदा


प्रदीप सोनी

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