निकल रही है निकल ही जायगी बेशुमार हो रौनके ज़िन्दगी में बेशक कभी रुसवा किस्मते होंगी कभी वक्त की रुसवाई होगी कभी युद्ध खिलाफ़ अपने होगा कभी जंग दुनिया संग आई होगी आज कौन है यहाँ जो मुक्क्कम हुआ हो काश और अगर तो हर दिल का ठहरा क़िस्सा है बचके तो कौन जायगा यहाँ से यही रहते इत्मिनान हो तो वो जन्नत से कम है क्या हौंसले ही देंगे राह आगे जाने का राह में वरना पीछे खीच रहे राह चलते है पा जायंगे मंजिल हालातों से टकरा कर के जैसे कीचड़ के आँगन में फूल कमल का खिलता है भरोसा रखो उस नीली छत वाले पर मगर उसी के भरोसा रह मत जाना अरे मान लिया वो है तो सभी का मगर बंधू सगा तो वो किसी का नहीं होता