ऐ मेरे खुदा
जा बैठा जो अम्बर पर
तू क्यों नजरो से बचता है
कही बेच ना दे बाजारों में
क्या तू इंसा से डरता है
ऐ मेरे खुदा जरा सामने आ
मुझे कुछ बात करनी है
वो खेतो में जो तपता है
दिन रात ही मेहनत करता है
औरो का जो पेट भरे
वो खुद क्यों भूखा मरता है
ऐ मेरे खुदा जरा सामने आ
मुझे कुछ बात करनी है
वो सीमा पर जो लड़ता है
क्यों बिन आई पर मरता है
जैसे अम्बर से टूटे तारा
क्यों चढ़ता सूरज ढलता है
ऐ मेरे खुदा जरा सामने आ
मुझे कुछ बात करनी है
इस बदनसीब गरीबी में
क्यों खेल निराले होते है
जंहा इज्ज़त तक भी बिक जाती
यहाँ दिन क्यों काले होते है
ऐ मेरे खुदा जरा सामने आ
मुझे कुछ बात करनी है
जो सच की सीढ़ी चढ़ता है
वो दुनिया से क्यों लड़ता है
इस इज्ज़तदार ज़माने में
ये सच क्यों भारी पड़ता है
ऐ मेरे खुदा जरा सामने आ
मुझे कुछ बात करनी है
बेबस इस ज़माने में
कुछ लोग सुना है ऐसे है
मोह छोड़ के सारी दुनिया का
बस तेरे भरोसे रहते है
ऐ मेरे खुदा जरा सामने आ
मुझे कुछ बात करनी है
ये खेल अजब है किस्मत का
क्यों समझ मैं आखिर पाता नहीं
जो चाहता हूँ वो मिलता नहीं
जो मिलता है वो चाहता नहीं
ऐ मेरे खुदा जरा सामने आ
मुझे कुछ बात करनी है
गिरगिट सा रंग बदल लेते
चाहे जीते हो या हारे हो
वो खुद को खुदा बना लेते
चाहे नेता या सरकारे हो
ऐ मेरे खुदा जरा सामने आ
मुझे कुछ बात करनी है
जो चेहरा चाँद सा खिलता है
नित अम्बर से जा मिलता है
क्यों सारा होश भुला देता
बन सुरूर वो ऐसा चढ़ता है
ऐ मेरे खुदा जरा सामने आ
मुझे कुछ बात करनी है
किस मिट्टी से ये तराशे है
जो पाया वो लुटा देते
अपने बच्चो की खुशियों पर
क्यों खुद को दाव लगा देते
ऐ मेरे खुदा जरा सामने आ
मुझे कुछ बात करनी है
ये दीप तो काफ़िर है मौला
तू इसकी बाते गौर ना कर
ये तो सारा दिन ही शोर करे
तू खुद को इससे बोर न करे
फिर भी अर्जी तू मान खुदा
मेरी करनी मैंने भरनी है
ऐ मेरे खुदा जरा सामने आ
मुझे कुछ बात करनी है
प्रदीप सोनी