सलाम ना आया (PDF) थी गुफ़्तगू इक आने के उसकी ढल चला आफताब पर पैगाम ना आया चढ़ा था सुरूर मय खाने में थे हम पर सदियों से प्यासों का वो “जाम” ना आया खड़े थे कुचे में इक झलक ऐ दीदार को वो आये नज़र मिली पर…
सलाम ना आया (PDF) थी गुफ़्तगू इक आने के उसकी ढल चला आफताब पर पैगाम ना आया चढ़ा था सुरूर मय खाने में थे हम पर सदियों से प्यासों का वो “जाम” ना आया खड़े थे कुचे में इक झलक ऐ दीदार को वो आये नज़र मिली पर…