ना चाहिये

 
 
रपिये हो या ताकत का
णाजोर दिखाणा ना चाहिये
कदे पासे उलटे पड़ जा से
ज्यादा अकड़ में आणा ना चाहिये
 
राज हो या हो यारी कोई
हर किसे ते बताणा ना चाहिये
रोला हो या प्यार कोई
घरक्या ते छुपाणा ना चाहिये
 
जमीन हो या गाय का
कदे मोल लगाणा ना चाहिये
ये माँ बराबर होवे से
इन्हें बेच के खाणा ना चाहिये
 
किसे बोदे और गरीब का 
कदे दिल दुखाणा ना चाहिये
औरा की मजबूरी का
णाफायदा ठाणा ना चाहिये
 
दगाबाज और दुश्मन गेल्या
बैठ के खाणा ना चाहिये
कन्या पे अर नारी पे
कदे हाथ उठाणा ना चाहिये
 
‘दीप’ चाहे हो हाल बुरे
पर किसे ते बताणा ना चाहिये
ये जग में हांसी करवा दे
किते दुखड़ा गाणा ना चाहिये 
 
   प्रदीप सोनी 

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